- आशा कार्यकर्ताओं को कालाजार बीमारी के लक्षण, बचाव और उपचार के बारे में दी गई विस्तृत जानकारी
- जिले भर के चिह्नित गांवों में शीघ्र शुरू होगा घर- घर कालाजार रोगी खोज अभियान
मुंगेर-
जिले के किसी भी प्रखंड के कोई भी गांव में कालाजार के मरीज अगर चिह्नित किए जाते हैं। तो वैसे व्यक्ति का तत्काल अस्पताल में जांच और इलाज कराएं। उक्त बातें शनिवार को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र धरहरा में कालाजार बीमारी को ले आशा कार्यकर्ताओं का एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुंगेर के वेक्टर डिजीज कंट्रोल ऑफिसर संजय कुमार विश्वकर्मा ने कही। उन्होंने बताया कि कालाजार एक खतरनाक एवं जानलेवा बीमारी है। जिले के कुछ इलाके कालाजार बीमारी से प्रभावित रहे हैं। इन क्षेत्रों में कालाजार उन्मूलन कार्यक्रम के तहत चिह्नित गांवों में छिड़काव कराया गया है। उन्होंने बताया कि कालाजार कि बीमारी लिसमैनिया डोनोवाणी नामक परजीवी से होता है। जिसका प्रसार संक्रमित बालू मक्खी के द्वारा होता है। बालू मक्खी किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो परजीवी स्वस्थ व्यक्ति के अंदर प्रवेश करता है। इस प्रकार यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलता है। इस बीमारी में दो हफ्तों से ज्यादा बुखार रहता है। जो किसी भी एंटीबायोटिक दवा से ठीक नहीं होता है ।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र धरहरा के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर अविनाश कुमार ने बताया कि कालाजार के संदिग्ध रोगी कि खोज कर ससमय जांच एवं उपचार करवाना जरूरी है। पीकेडीएल कालाजार बीमारी का एक प्रकार है जिसमें मरीज के शरीर के हिस्से में सिहुली जैसा सफेद दाग धब्बा या गांठ हो जाता है। जो व्यक्ति पहले कालाजार का मरीज रह चुका है। वो ही इस तरह के पोस्ट कालाजार डर्मल लेशमेनियासिस (पीकेडीएल) से ग्रसित हो सकते हैं। उपचार के लिए मरीज को 84 दिनों तक दवा खानी पड़ती है। उपचार के दौरान मरीज को सरकार द्वारा 4 हजार रुपए की श्रम क्षतिपूर्ति राशि भी दी जाती है। इस अवसर पर वीबीडीएस भावेश कुमार, बीसीएम, पिरामल स्वास्थ्य के सब डिविजनल कोऑर्डिनेटर अमरेश कुमार सहित प्रखंड के कई हिस्सों से आई आशा कार्यकर्ता और अन्य स्वास्थ्य कर्मी उपस्थित थे ।
प्रखंड के वीबीडीएस भावेश कुमार ने बताया कि कालाजार के लक्षण इस प्रकार के हो सकते हैं। जैसे बुखार का अक्सर रुक-रुक कर या तेजी से तथा दोहरी गति से आना, भूख कम लगना, वजन में कमी जिससे शरीर में दुर्बलता, कमजोरी, त्वचा सूखी, पतली और शुष्क होना तथा बाल झड़ने जैसा हो सकता है। इस बीमारी में खून की कमी बड़ी तेजी से होने लगती है। गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और चेहरे का रंग काला हो जाता है। इसी से इसका नाम कालाजार या काला बुखार पड़ा है।
मरीजों को मिलती है 7100 रुपये की पारिश्रमिक क्षतिपूर्ति राशि :
उन्होंने बताया कि कालाजार मरीजों को दो दिन का ही पारिश्रमिक क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान किया जाता था। चूंकि कालाजार से पीड़ित मरीज काफी कमजोर हो जाता है तथा इलाज के पश्चात पूर्ण स्वस्थ होने में करीब एक माह का समय लग जाता है। बीमारी के दौरान हुई कमजोरी के कारण कालाजार मरीज मजदूरी करने की स्थिति में नहीं रहते हैं। जिसको देखते हुए सरकार ने कालाजार रोग ग्रसित सभी मरीजों को पारिश्रमिक की क्षतिपूर्ति देने का निर्णय लिया है। योजना के तहत 6600 रुपये तथा केंद्र सरकार की ओर से 500 रुपये यानी कुल 7100 रुपये भुगतान करने का प्रावधान है।
प्रशिक्षण में मिली कालाजार से जुड़ी कई अहम जानकारी :
प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपस्थित आशा कार्यकर्ता मनोरमा शर्मा ने बताया कि प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिला से आए अधिकारियों ने कालाजार के मरीजों को पहचानने के लिए बहुत सारी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि चमरा वाला कालाजार के मरीज के बारे सर ने बताया कि जिसको पहले कालाजार हो चुका होता है उसी को बाद में चमरा वाला कालाजार होता है जिसे पीकेडीएल कहते हैं।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपस्थित आशा सावित्री हेंब्रम ने बताया कि आज के ट्रेनिंग में फाइलेरिया के बारे में भी जानकारी दी गई। इसमें बताया कि यहां पर फाइलेरिया रोगियों का एक पेशेंट सपोर्ट प्लेटफार्म बनाया जाना है। इस प्लेटफार्म से जुड़े रोगियों के सहयोग से क्षेत्र में जाकर लोगों को एमडीए राउंड के दौरान फाइलेरिया कि दवा खाने के लिए जागरूक किया जायेगा। इससे हमलोगों को लोगों को दवा खिलाने में बहुत मदद मिलेगी। इसके साथ ही जो लोग दवा खाने से इंकार करते हैं उन्हें भी फाइलेरिया रोगियों के सहयोग से दवा खिलाना आसान होगा । इस अवसर पर मीरा देवी, पूनम कुमारी सहित कई आशा ने अपने विचार रखे।
रिपोर्टर
Aishwarya Sinha
The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News
रिपोर्टर
The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News
Aishwarya Sinha